खिजाओं में भी जो फूल खिला देती है
खिजाओं में भी जो फूल खिला देती है
मायूसियों में उम्मीद जगा देती है
आधी -अधूरी सी दुनियाँ को मेरी माँ
अपने प्यार से मुकम्मल बना देती है
बिन माँ के बच्चों से पूछो माँ की क़ीमत
ये दुनियाँ उनका क्या हाल बना देती है
हर-सू नज़र आता है मुझे नूर खुदा का
मेरे दर्द पे जब माँ अश्क़ बहा देती है
ख़ौफ़-ओ-परेशानी में भी माँ की छाया
अब भी चैन की नींद सुला देती है
अजब शख्सियत आता की है माँ को रबने
जख़्म दे औलाद तो भी दुआ देती है
कमियों को ‘सरु’ हमेशा भुला देती है
इधर देखा मुझे उधर वो मुस्कुरा देती है