खिचड़ी ( हास्य व्यंग कविता )
खिचड़ी कुकर में ही नहीं ,
खिचड़ी दिमाग में भी पकती है ।
जहां मिलें चार यार ,/ सहेलियां ,
खिचड़ी वहीं पकती है।
खिचड़ी कुकर में पके या दिमाग में,
अगर पकती है तो स्वादिष्ट ही पकती है।
मजा जितना इसे खाने में आता है ,
व्यंग्य का घी डालकर सुनाने में भी,
यह उतनी ही भली लगती है।
और जो बड़े मजे से सुनता है ,
उसे इसकी रेसिपी उतनी ही शानदार लगती है ।
तभी यह खिचड़ी और चार लोगों में,
बांटी जाती है और परोसी जाती है।
तब यह खिचड़ी नहीं खिचड़ा बन जाती है।
क्योंकि इसमें फिर सामग्री और मिल जाती है।
खिचड़ी तो मीडिया वाले भी अच्छी पका लेते हैं,
जनता के दिमाग में ,नेताओं के दिमाग में,
यह परोसते है अपनी अदा और मनुहार के साथ ।
इसका स्वाद तो तब और भी बेहतरीन हो जाता है,
जब इसमें मसालों की भरमार जायदा हो जाती है।
खिचड़ी चाहे कोई सी भी हो ,
बीमार हो या स्वस्थ ,सबको भली लगती है।
भले ही मुंह में स्वाद खराब हो ,
मगर मसाले और डाल दो तो ,
अचार ,दही ,घी ,पापड़ के साथ ,
बहुत लजीज लगती है।
तभी तो कहते है ” खिचड़ी के चार यार ,
दही ,पापड़ ,घी और आचार ।
और कोई गॉसिप उसे सुना दो ,
तो उसके दिमाग में भी खिचड़ी पकने लगती है ।
और बीमारी से ध्यान हट जाता है,
और तबियत ऐसे में प्रसन्न हो जाती है।
देखिए जनाब ! खिचड़ी हर तरह से सेहद के ,
लिए लाभदायक ही होती है।
इस खिचड़ी की लोकप्रियता ,
जिस तरह से इतनी बढ़ गई है ।
आप हैरान होंगे विदेशों में भी इसकी ,
डिमांड बढ़ गई है।
पहले भारतीय फिर पड़ोसी मुल्क ,
और अब यूरोप में भी पकने लगी है।
घरों का तो पता नही मगर विदेशी ,
राजनायकों के दिमाग में भी पकने लगी है।
इसीलिए हमारा विचार है इसके ,
इस तरह के जबरदस्त प्रभाव और लोकप्रियता ,
को देखते हुए इसे राष्ट्रीय व्यंजन ही नही ,
अंतर्राष्ट्रीय व्यंजन घोषित कर देना चाहिए ।
व्यंजन हमने इसे इसीलिए कहा ,
क्योंकि यह सारे नामी व्यंजनों में ,
सबसे अधिक प्रभावकारी और प्रतिभाशाली है।
जो दुनिया के जुबान पर ही नहीं ,
दिल और दिमाग पर भी राज करती है।