खिङकियां
खिड़कियाँ
मेरी ख्वाहिशों की
खिड़कियों पर
बयार बासंती
दस्तक देती है
सुनहरी धूप की स्याही
किस्सों की बयानी करती है
कुछ सपनो के बीज
जो छूटे थे
कही किसी पगडंडी पर
आज वो इक रूप नया
अख्तियार करते है
मुलाकात करते है
कभी मुझसे बात करते है
मेरे मन के मौसम मे
रंग फागुनी घोल कर
ज़िंदगी गुलज़ार करते हैं