*अवध में प्रभु राम पधारें है*
अपने नियमों और प्राथमिकताओं को बहुत स्पष्ट रूप से परिभाषित क
ज़िंदगी को जीना है तो याद रख,
*बना दे शिष्य अपराजित, वही शिक्षक कहाता है (मुक्तक)*
शादी कुँवारे से हो या शादीशुदा से,
जिस्म से जान निकालूँ कैसे ?
कोई भी व्यक्ति अपने आप में परिपूर्ण नहीं है,
इज़्जत भरी धूप का सफ़र करना,
विचार
अनिल कुमार गुप्ता 'अंजुम'
लेखक होने का आदर्श यही होगा कि
चाहतों की सेज न थी, किंतु ख्वाबों का गगन था.....
इश्क़ और चाय
singh kunwar sarvendra vikram