खाली पैमाना
दिल खाली पैमाना सा रह जाता है ,
कोई जाम उल्फत का नहीं आता है ।
क्या रकीब या रफीक सब एक जैसे ,
हां! कुछ नुक्तचिनियां जरूर डालता है ।
कुछ अरमान है सूखे फूलों जैसे बेजान ,
जिनके आंसुओं से ही यह जाम भरता है ।
तकदीर से तो कोई उम्मीद न रही हमें अब ,
मगर खुदा से जरूर गिला सा रह जाता है ।
आखिरश ख्वाब भी टूट गए पैमाने जैसे,
मगर हर टुकड़े में एक अक्स नजर आता है ।
दिल के पैमाने को भरते है बस इंतजार से,
देखें कब कोई फरिश्ता मेहरबान होता है ।
“अनु,” को अब जाकर समझ में आया ,
जिंदगी जीने मे औ उसे गुजारने में फर्क होता है ।