खामोश शहर
खामोश शहर में गूँजती एक आवाज कम नहीं,
अंधेरे में जले,वह एक चिराग कम नहीं,
स्वार्थ में बदलती #विश्वास को खोती हक की आवाज,
गीत गाता एक फकीर भी कम नहीं,
आजाद हुए और बैठ रहे गद्दी पर,
हिन्द सेना के बहे लहू की क्या समझोगे तुम कीमत ।।
खामोश शहर में गूँजती एक आवाज कम नहीं,
अंधेरे में जले,वह एक चिराग कम नहीं,
स्वार्थ में बदलती #विश्वास को खोती हक की आवाज,
गीत गाता एक फकीर भी कम नहीं,
आजाद हुए और बैठ रहे गद्दी पर,
हिन्द सेना के बहे लहू की क्या समझोगे तुम कीमत ।।