खामोश रह कर हमने भी रख़्त-ए-सफ़र को चुन लिया
खामोश रह कर हमने भी रख़्त-ए-सफ़र को चुन लिया
समझी ग़लत तुमने मुहब्बत खाक़-सर को चुन लिया
क्या है नहीं हमसे मोहब्बत दिल-परस्ती जान लो
ख़स्ता-ज़िगर ठहरे है, हम तो क्यों शरर को चुन लिया
महबूब ऐसे दर-ब-दर जाओ हमें ना छोड़ कर
क़ैद-ए-क़फ़स ने आप ही इस बुल-बशर को चुन लिया
बद-कार हूँ मैं, मानता हूँ प्यार का तेरा नहीं
दानिश ख़बर इस बात की रख हम-सफ़र को चुन लिया
क्यों ज़र्द चेहरा हो गया मेरा ग़लत मंसब नहीं
मौसम बहुत कम-ज़र्फ़ है जाज़िब-नज़र को चुन लिया
ख़ल्वत-नशीं है ये डगर ख़ल्वत-कदा पूरा नगर
दामन-कशाँ में कौन सा ज़ुर्म-ए-हशर को चुन लिया
गुस्ताखियाँ ग़ुमनामियों में हो गई हम से मगर
मा’शूक़ तुमने फिर वही बेदाद-गर को चुन लिया