खामोश मोहब्बत
तारीफ उसकी करता रहा
मैं अपनी कविताओं में
सुनकर खुश होती थी वो भी
अपनी तारीफ, मेरी कविताओं में।।
ऐसा लगता था मुझे कि
वो भी मुझे चाहती है अब
हम दोनों जीवन साथ
बिताएं, यही चाहता है रब।।
देखता था उसे तो वो भी
ख्यालों में खोई रहती थी
कौन जानता था दिल में उसके
किसकी यादें रहती थी।।
मैं तो समझता रहा वो भी
मेरे प्यार में खोई रहती है
जब भी मिलता हूं उससे
प्यार से मुस्कुराती रहती है।।
जब आई नहीं कॉलेज
कुछ दिन वो अचानक
मेरे दिल में ना जाने क्यों
ख्याल आने लगे भयानक।।
फिर एक रोज़ वो दोबारा
कॉलेज में मुझको दिखी
लेकिन आज वो पहले से कुछ
बदली बदली सी दिखी।।
जब मिली तो बोली की दोस्त
शादी की बधाई नहीं दोगे
मैनें मन में सोचा मुझे बताकर,
अब क्या, जान मेरी लोगे।।
एक तरफ सपने टूट गए थे
और उसकी बधाई दे दो!!
स्तब्ध था मैं, चाहता था कि
मज़ाक है ये, तुम ये कह दो ।।
थी यही सच्चाई अब मुझे
ये समझ आ गया था
उसको शादी की बधाई दी
तो दिल टूट गया था।।
मैं लिखता रहा बस
कविताएं उस पर
लेकिन वो कविता किसी
और की बन गई थी।।
???