खामोश बस्ती
खामोश बस्ती में,
बनी कब्र से आवाज आई,
आसपास बनी झुग्गी झोपड़ी थराई।
मुझे अनायास लाया कौन?
मेरे दर्द को जाने कौन?
फरिश्ते बोले,
अरे कमबख्त!
जिसके लिए खुद भूखा रहकर,
एक एक निवाला जोड़कर,
मिल्कियत बनाई।
वहीं भीड़ लेकर,
तुझे दफनाने आई।
नारायण अहिरवार
अंशु कवि
सेमरी हरचंद होशंगाबाद
मध्य प्रदेश