खामोश कर्म
तेज रफ्तार धरती के
अनेक है दबे छुपे धरम
बिना शोर के निभ रहे
लाखों खामोश करम
हर हाल मे जुटे निभाने
अपनी ली जो जिम्मेदारी
शांत खडे हरे भरे पेड
छांव ,आसरे की सदा तैयारी
कीटों की दुनिया बसती
मिट्टी संग होली में
चुप हो वो बढाते जाते
उर्वरता मां की झोली में
भांति भांति के फूलों से
रंग बिरंगी यह दुनिया
सुंदरता की सेज बिछाए
मनाव तितली सब हरषाए
गहरे पेठे पानी ओढे
कुआं मुह से कुछ ना बोले
पानी बस देता ही जाए
सब प्यासो की प्यास बुझाये
हम भी कुछ ऐसा कर जाए
बिन दिखावे कर्म होते जाए
उत्तरदायी ज्यादा होकर
हक पाने को कम चिल्लाए
संदीप पांडे “शिष्य”