खामोशी
कितनी परतें
कितने तह हैं ना
तुम्हारी
आँखों में भी
बातों में भी
कि जैसे तुम
तुम नहीं
कोई और हो
या फिर वो
जिसे देखा था
फिरते हुए सड़कों पर
मनचली सी
वो
तुम नहीं
कोई और थी..
हर रोज
कोई और
हुआ करती हो तुम
कहो ना
कौन हो तुम
ओ खामोशी!
कुछ तो बोलो
ओ खामोशी!
कुछ तो बोलो