*खामोशी अब लब्ज़ चाहती है*
खामोशी अब लफ्ज चाहती है
जीने का अंदाज बदल कर ,
तन्हाई में घुट घुट कर क्यों मरना ,
पुराने जमाने की बातें सुनना ,
आखिर ऐसा काम क्यों करना ,
खामोशी अब लफ्ज चाहती है…! !
गिले शिकवे सभी भुलाकर ,
अपनी प्रतिभा को कर उजागर ,
नए सिरे से आगे पथ पर बढ़कर ,
पुराने नजरियों को बदलकर ,
आखिर कब तक चुप सहन कर ,
खामोशी अब लफ्ज चाहती है…! ! !
बंद ओंठो को कब तक सीकर ,
बर्दाश्त हदों की सीमा पार कर ,
अब चुप ना रहना मुँह खोलकर ,
नए अंदाज में जीना सीखकर ,
खामोशी अब लफ्ज चाहती है …! ! !
गुजर गई वो हद की सीमा पार कर,
आगे अब चुप्पी साधे तोड़कर ,
मौन धारण छोड़कर ,
सहते सुनते ताने बाने कसकर ,
अब ना होगी कोई रोकटोक कर ,
खुद पे चहल कदमी कर ,
आगे चलकर हिम्मत कर ,
खामोशी अब लफ्ज चाहती है….! ! !
शशिकला व्यासशिल्पी✍️