खामोशियाँ
गुनगुनाते झरनो के रसीले सुर
फूलों के खिलते मासूम रंग
तितली भँवरों की ये गुनगुन
अनकहे प्रेम की बहती तरंग
सितारों की अनगढ़ चमक
मौन संवादों की मधुर गूँज
अन्तर्मन को छू जाते
ये खामोशियों के पल
अत्याचारों की खामोश सहन
खुली सड़क का व्यभिचार
होना घटना का मूक साक्ष्य
बली की लाठी, पीठ गरीब की
मानवता की इस मृत्यु पर
अनुत्तरित प्रश्नों की मौन भीड़
सोने नहीं देते नींद चैन की
ये खामोशी के.खुदगर्ज पल
मीनाक्षी भटनागर। नई दिल्ली
स्वरचित
24-10-2017