खामखा ( हास्य व्यंग )
खामखा ( हास्य व्यंग )
जब तुम भीड़ में खड़ी थी
तुम्हारी अदा मुझको भा गई
पर मैं क्या कर सकता था
तू सूंदर इतनी थी की
पसंद मेरे पीछे वाले को आ गई।
मैंने हाथ बढ़ाया तेरी तरफ
तू भी मेरे पास आ गई
जब रिश्तें की बात चली
तो मेरे नाम की मिठाई
पडोसी को खिला गई।
अभी तेरी याद में कुछ लिखा
लिखते ही तू रूबरू आ गई
वो पन्ना दे ही रहा था तुमको
माँ माँ कहते हुए कुछ बच्चों की
फौज पन्नें का जहाज बना गई।
अब कोई तो सूरत हो दिखा दो
दिल ऐ नादान को समझाऊं कैसे
मेरी चाहत तुमसे शादी की नहीं थी
तू तो खामखा हर बात पर शर्मा गई।
तनहा शायर हूँ यश