*खादिम*
लेखक : डॉ अरुण कुमार शास्त्री – पूर्व निदेशक – आयुष – दिल्ली
खादिम
दुआ करता है ये खादिम तू ही तू नज़र आये ।
मिरे मौला तेरी सूरत हरसू नज़र आये ।
मेरे हर काम में खुदा की रहमत नज़र आये ।
दर्द से काम क्या जब दिलबरी असर लाये ।
मिटा दे अंधेरे सुन्दर मुखड़ा दिखा दे ।
सलोनी सी राधा साँवले से कानहा रु – ब – रु आये ।
गीता के ऐसे चुनिंदा चंद छंद भेज दे ।
ये दुनिया ये दुनियादारी से रख दूर मुझको ।
मुझको तो बस अपने पाक दामन का कफन भेज दे ।
हकों हलाल की रोटी में खाऊँ ।
नमक मेरे मौला तू अपने वतन का मुझे भेज दे ।
मेरे वतन के लिए मिरी जां हो हाजिर ।
कतरा – कतरा लहू का हो इसकी खातिर ।
ऐसे कट्टर विचारों का एय मालिक असर भेज दे ।
गिरह –
मिटा दे आसुरी सभी शक्तियाँ मेरे दाता ।
काश्तकारों के लिए पुरनूर वज़न भेज दे ।
न हो तेरी दुनिया में कोई राजा न राया ।
सबको बराबर का ऐसा इक हक भेज दे ।
करे पाप क्यूँ कोई भरे दंड फिर आदमी क्यूँ कोई ।
सभी को अपनी नजरें इनायत का अलम भेज दे ।
न हो कोई छोटा न कोई भी हो बड़ा किसी से ।
सबको इकसार एय मौला जीने का हक भेज दे ।
ये दुनिया है फ़ानी नहीं कोई रहबर नहीं कोई जांनी ।
तू ही था सबका तू ही ने रहना तू ही करेगा रखवाली ।
दुआ करता है ये खादिम तू ही तू नज़र आये ।
मिरे मौला तेरी सूरत हरसू नज़र आये ।
मेरे हर काम में खुदा की रहमत नज़र आये ।
दर्द से काम क्या जब दिलबरी असर लाये ।