खाकी – खद्दर पहने हुये , इंसान बिकने लगे
खाकी – खद्दर पहने हुये , इंसान बिकने लगे
कोडियों में यहाँ लोगो के,ईमान बिकने लगे ।।
कही मुर्दे तो,कही आज शमशान बिकने लगे,
चदरों पे खुदा,पत्थरो में भगवान बिकने लगे ।।
सब की सब इन सियासी लोगो की चाले है,
कहीं पे हिन्दू तो ,कही मुस्लमान बिकने लगे ।।
चिमनियों का धुँआ,अब आवाज लगाता नहीं,
घर से मुफलिस के , अब सामान बिकने लगे ।।
तितलियाँ सर पटक रोने लगी,उजड़े चमन पे
कागजी फूलो के लिए , गुलदान बिकने लगे ।।
रिश्तों की तमाम दीवारों पे धूल जमी देखी है,
थोड़ी सी दौलत देख कर ,मेहमान बिकने लगे ।।
मजबूरियों ने बना दिया, बाज़ारू मासूम को,
कोठो पे बड़े-बडे शरीफों के,ईमान बिकने लगे ।।
माँ अपने बेटे की जिद के आगे , यूँ हार गई
चूड़ी , कंगन हो कर जेवर परेशान बिकने लगे ।।
खुशियाँ भी पुरव गरीब के,घर गम लेकर आई
बेटीयों के जेवर खातिर , मकान बिकने लगे ।।