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12 Feb 2017 · 1 min read

ख़्वाबों की किरचियों में हूं

ख़्वाबों की किरचियों में हूं तो हसरतों में हूं ।
तेरे लबों की आज भी मैं लाग्जिशों में हूं।

माना कभी था तूने मुझे अपनी जिंदगी,
नजरें झुकी है आज तेरी महफिलों में हैं ।

इतने खिले हैं जख़्म मेरे दिल पे जा ब जा,
महसूस हो रहा है कि मैं गुलशनों में हूं।

लहरा रहा है दर्द जो दिल की जमीन पर,
कितनी खुशी है आज बड़ी मुश्किलों में हूं ।

अल्फ़ाज नर्म हैं तेरा लहजा बदल गया,
लगता नहीं है मैं भी तेरे दोस्तों में हूं।

मेरी हयात का ये सफर भी अजीब है,
मैं बेकसों में हूं तो कभी बेबसों में हूं।

चाहत का सिलसिला मुड़ा तो ऐसे मोड़ पर,
लगता नहीं कि मैं भी तेरी ख़्वाहिशों में हूं ।

मुझको मिला है ‘राज’ क्या इस एहतिजाज से,
लगता है जैसे आज तेरे दुश्मनों में हूं ।
——राजश्री——

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