ख़्याल इसका कभी कोई
ख़्याल इसका कभी कोई
रख नहीं पता।
नजर से गिर के कभी कोई
उठ नहीं पता ।
वह दौर और था जीते थे
दूसरों के लिए,
किसी के वास्ते अब कोई
मर नहीं पता ।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद
ख़्याल इसका कभी कोई
रख नहीं पता।
नजर से गिर के कभी कोई
उठ नहीं पता ।
वह दौर और था जीते थे
दूसरों के लिए,
किसी के वास्ते अब कोई
मर नहीं पता ।
डाॅ फ़ौज़िया नसीम शाद