ख़ुश-हाली पर शा’इरों के मुख़्तलिफ़ ख़्यालात
संकलनकर्ता: महावीर उत्तरांचली
(1.)
इक दिया नाम का ख़ुश-हाली के
उस के जलते ही ये मालूम हुआ
—कैफ़ी आज़मी
(2.)
जिसमें शामिल ही न मिले तुम
वह ख़ुशहाली क्या ख़ुशहाली
—रमेश प्रसून
(3.)
नज़र आती नहीं मुफ़्लिस की आँखों में तो ख़ुश-हाली
कहाँ तुम रात-दिन झूठे उन्हें सपने दिखाते हो
—महावीर उत्तरांचली
(4.)
कभी किसी का बुरा ही नहीं किया फिर भी
ज़माना है मिरी ख़ुश-हालियों से ख़ौफ़-ज़दा
—साहिर शेवी
(5.)
सय्याद के घर से गुलशन तक अल्लाह कभी पहुँचाए मुझे
उम्मीद नहीं मैं ख़ुश हो कर देखूँ ख़ुश-हाली फूलों की
—नूह नारवी
(6.)
ख़ुश-हाल भी हो सकता हूँ मैं चश्म-ए-ज़दन में
मेरे लिए उस जिस्म का सोना ही बहुत है
—ज़फ़र इक़बाल
(7.)
पी चुकी सब आम की ख़ुशबू को बू पेट्रोल की
शहर से आई लिए कैसी ये ख़ुश-हाली सड़क
—सय्यद अहमद शमीम
(8.)
ख़्वाबों के ख़ुश-हाल परिंदे सर पर यूँ मंडलाते हैं
दूर से पहचाने जाते हैं हम अपनी बे-ख़्वाबी से
—ज़ुल्फ़िक़ार आदिल
(9.)
कितनी ख़ुश-हाल है सारी दुनिया
कितना वीरान है ये घर देखो
—अहमद वहीद अख़्तर
(10.)
अंदर से हैं बिखरे बिखरे
और बाहर से सब ख़ुश-हाल
—एजाज़ तालिब
(11.)
इश्तिहारात लगे हैं मिरी ख़ुश-हाली के
और थाली में मिरी ख़ुश्क निवाला भी नहीं
—शकील जमाली
(12.)
रहेगी वा’दों में कब तक असीर ख़ुश-हाली
हर एक बार ही कल क्यूँ कभी तो आज भी हो
—निदा फ़ाज़ली
(13.)
हर शख़्स को ख़ुश-हाली की देते हैं दुआएँ
हर शख़्स ही कर जाता है नुक़सान हमारा
—इक़बाल पयाम
(14.)
जब अपने साथ साथ था ख़ुश-हाल था बहुत
ख़ुद से बिछड़ के ख़ुद को गदागर बना दिया
—मुशताक़ सदफ़
(15.)
ग़ुर्बत की तेज़ आग पे अक्सर पकाई भूक
ख़ुश-हालियों के शहर में क्या कुछ नहीं किया
—इक़बाल साजिद
(16.)
लोग उस शहर को ख़ुश-हाल समझ लेते हैं
रात के वक़्त भी जो जाग रहा होता है
—सग़ीर मलाल
(17.)
तिरी ख़ुश-हालियों की क़ामत को
तेरे माज़ी से नापते भी हैं
—ज़िया शबनमी
(18.)
ख़ुश-हाल घर शरीफ़ तबीअत सभी का दोस्त
वो शख़्स था ज़ियादा मगर आदमी था कम
—निदा फ़ाज़ली
(19.)
कितनी ख़ुश-हाल है सारी दुनिया
कितना वीरान है ये घर देखो
—अहमद वहीद अख़्तर
(20.)
समुंदर पार जा कर जो बहुत ख़ुश-हाल दिखते हैं
ये उन के दिल से पूछो कैसे हिजरत तोड़ देती है
—जावेद नसीमी
(21.)
चेहरे पर ख़ुश-हाली ले कर आता हूँ
तुम से मिलने टैक्सी ले कर आता हूँ
—इलियास बाबर आवान
(22.)
दबदबा बढ़ता गया शहर में ख़ुश-हाली का
मिल गई दाद मिरे दश्त को वीरानी की
—नोमान शौक़
(23.)
तू जिन्हें बेच के ख़ुश-हाल नहीं होता है
क़िस्सा-गो ऐसे लतीफ़े मुझे वापस कर दे
—फ़े सीन एजाज़
(24.)
ख़ुश-हाल उस हरीफ़-ए-सियह-मस्त का कि जो
रखता हो मिस्ल-ए-साया-ए-गुल सर-ब-पा-ए-गुल
—मिर्ज़ा ग़ालिब
(25.)
कहीं देखी नहीं ऐ ‘शाद’ हम ने ऐसी ख़ुश-हाली
चलो इस मुल्क को पंजाब में तब्दील करते हैं
—ख़ुशबीर सिंह शाद
(26.)
वो बदन की भीक देने पर हुआ राज़ी तो मैं
अपनी ख़ुश-हाली में इक साइल बरामद कर लिया
—नोमान शौक़
(27.)
ज़रा सी देर में कश्कोल भरने वाला था
मिरा ख़ुदा मुझे ख़ुश-हाल करने वाला था
—अज़लान शाह
(28.)
ना-शनास-ए-रू-ए-ख़ुश-हाली है तब-ए-ग़म-नसीब
जब मसर्रत सामने आई झिजक कर रह गई
—साक़िब लखनवी