*ख़ुशी की बछिया* ( 15 of 25 )
ख़ुशी की बछिया
‘ ख़ुशी ‘.. किसी नवजात बछिया सी
सुन्दर – मासूम – ऊमंगों भरी
लेकिन मन की खूंटी पर
जैसे जबरन ही बांधी हुई …
उठती – बैठती – उछलती
दर्द की तेज उष्णता से ,
बेचैन थकी हारी सी …
संकल्पों की रस्सी से
निरन्तर जूझते हुए
मुक्त हो जाने के
हर संभव प्रयास में ….
मेरी प्यारी सी ‘ ख़ुशी’..
तुम्हारी काली बड़ी – बड़ी आँखों में
दिखाई दे रहे हैं , हरे मैदान ,
जंगल, झरने और आसमान ..
सोचती हूँ मुक्त कर दूँ तुम्हें
पर मोह आशंकित है ..
तुम भटक तो नहीं जाओगी
जीवन की पगडंडी पर …?
मेरी प्यारी ख़ुशी की बछिया
तुम लौट क़र आओगी ना ?
मेरे मन के खूंटे पर ?
– क्षमा ऊर्मिला