ख़ुशियों की दुकान सजाये
ख़ुशियों की दुकान सजाये
रंग बिरंगा सामान लगाये
लगता है हर साल मेला
त्योहारों की जब आये बेला
अनदेखा कर हर मर्ज़ को
रोज़ रोज़ के संघर्ष को
भुला कर दुःख दर्द को
मिलते सबसे बाहें फैला
त्योहारों की जब आये बेला
गर खुशियाँ रहे सदा कायम
संघर्ष और संतोष का बने सन्तुलन
द्वेश से ना होगा मन कोई मैला
सौहार्द और प्रेम भाव जगा
हर दिन फिर बीतेगा त्योहार सा
चित्रा बिष्ट