ख़ुदाया प्यार में यूँ बंदगी अच्छी लगी..
ख़ुदाया प्यार में यूँ बंदगी अच्छी लगी
रही मैं ना मैं मुझे बेखुदी अच्छी लगी
खलाएँ जीस्त की मेरी तमाम भर गई
मिला साथ तेरा तो हर कमी अच्छी लगी
वक़्त ने दिखाए रंग वो कि बस में कुछ न था
कभी अंधेरा कभी रोशनी अच्छी लगी
डर नहीं मुरझा जाने का कोई हो मौसम
जहाँ में काँटों से भी दोस्ती अच्छी लगी
भले दुनियाँ कहे बुरा तुम्हें ए दर्द मिरे
मगर साथ तुम्हारे ज़िंदगी अच्छी लगी
दिया हौसला और कुछ सबक़-ओ-दाँव-पेंच
मुसीबत राहों में जो भी मिली अच्छी लगी
लगा के दिल किसी से झूठी माया जान ली
इसीलिए ‘सरु’ को दिल की लगी अच्छी लगी
—-सुरेश सांगवान’सरु’