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20 Feb 2019 · 1 min read

ख़िराज-ए-अक़ीदत

बिन कह के कुछ भी,सब,कोई बयान कर गया,
चुपके से कोई, मुल्के-जाँ-निसार कर गया।

मौक़ा भी मिल सका कहाँ ,तौफ़ीक़-ए-नुमायाँ,
अपनों के सँग ग़ैरों को,अश्क़-बार कर गया।

मुस्तैद थे अवाम-ए-हिफ़ाज़त, को जो फ़क़त,
दहशत-ए-सितमगर था,फिर शिकार कर गया।

वर्दी पे जिनके दाग़ तक,लगा न ज़ीस्त भर,
आतिश-ए-धमाका,सुपुर्द-ए-ख़ाक कर गया।

माटी का चुका क़र्ज़, चला हर जवान था,
हर ख़ास-ओ-आम को वो,क़र्ज़दार कर गया।

कुछ कर के गुज़रने का,था जो हौसला जवाँ,
गुज़रा यूँ, शहादत मेँ अपना नाम कर गया।

लाएगी रँग ज़रूर शहादत, भी किसी दिन,
ख़ूँ दे के अहले-दिल को,ख़ूँ-ए-बार कर गया।

“आशा” है अब तो मुल्क-ए-हुक्मराँ से,बस यही,
बर्बाद हो वो, उनको जो बर्बाद कर गया..!

मुल्के-जाँ-निसार # देश पर प्राण निछावर करना,to render highest sacrifice for the country
तौफ़ीक़-ए-नुमायाँ # साहस और हुनर दिखाना, to exhibit courage (and techniques)
अश्क़-बार #अश्रुपूरित (नयनों के साथ), with tears (in eyes)
अवाम-ए-हिफ़ाज़त # जन सामान्य की सुरक्षा में, in security of of the public.
ज़ीस्त # जीवन, life
अहले-दिल # जन मानस के हृदय को,the hearts of the common man
ख़ूँ-ए-बार # (मानो)लहूलुहान, blood bathed(as if)

13 Likes · 8 Comments · 688 Views
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