खरीद विक्रय
शरीर है
शारीर है.
है सब क्रिया कलाप,
.
खुशियाँ हैं तभी तक,
स्वास्थ्य है पास जब तक,
सुंदर है बाल,
लाल सुर्ख गाल,
.
तन है शरीर माफिक,
मन नहीं तुम्हारा तौफीक.
मल,मूत्र,काम-वासना का घर है.
कर ले भले कितने चिलतर.
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प्रकृति निसर्ग से नहीं वाकिफ,
भले उठा न व्यर्थ के जोखिम.
पत्थर है पैसा, हीरे जवाहरात.
उनसे जीव जीवन की रक्षा कर.