खयालात( कविता )
खयालात
आंखों में यूं सैलाब है
टूटे हुए अधूरे कुछ ख्वाब हैं
हर तरफ एक सुना पन है
दिन हो या चाहे रात हो
बस तेरा ही ख्यालात है
कुछ अनकहे लफ्ज़ है
कुछ अनसुनी जज्बात हैं
सुना हर एक लफ्ज़ है
बस तेरा ही ख्यालात है
अनदेखा घाव है अनसुनी आस है
अधूरी सी एक बात है
बस तेरा ही ख़यालात है
गुजर गया जो लम्हा
वह एक रूठा सपना था
कभी इबादत था वो मेरी
वह अब इक टूटा सपना है
ठुकरा कर जिसे तू गुजर गया
बस वही तेरा कि ख्यालात है
की आंखों में यू सैलाब हैं