खबर।
खबर
बहुत पहले की प्रकाशित मेरी एक रचना ।
तडफती धूप में
खाली खेतों की
फट्टी बिवाईयां पर
खडा है वह
आकाश पर नजर गड़ाये
कहीं मेधों के घर से
कोई खबर तो आये।
थरथरा रहे हैं पांव
सीने में बेतरतीब
उछल रहा है दिल
नहीँ हो पाई रोपाई
धान कहाँ से आये?
कुनबे की भूख का जुगाड़?
ऊपर से कर्ज की मार
कर रहा बेहाल लगातार
बनिया और सरकार।
टपका रही टेसू
घर की मेहरारू
मुहं बिचकाये बस
देती जा रही गाली।
धुलता जा रहा वह
नमक में.पानी सा
कांप कांप जाए हिया
अनहोनी धमक-सा
हुआ वहीं जिसका डर था
आ गया संदेशा
कन्या के वर का ।
हो गया रिश्ता हरजाई
तोड़ दी बेटी की सगाई
कर नहीं पाता वह
खाली कनस्तरों से
दान दहेज की भरपाई ।
उधर ललवा भी
निकल गया
घर छोड़
छोड़ बच्चे और लुगाई
छिडकाव की दवा
बचा था एक रास्ता
वहीं वह गटगटा गया
तानी चादर और
लमलेट हो गया
अब उठा रही है
मेहरारी. पडोसी
पूरा गांव
उठो ! उठो !
करो बुवाई
भर गये हैं खेत
नदी, नाले और नहरें
पर नहीं खोली आंख
सबसे बेखर
बन गया वह
एक खबर।