खबरा
पढ़ो देश मेरे की छपी हुई ख़बरें को,
तों महसूस करोगे रोते हुएं अक्षरों को।
कोई दुःखी है यारों अपनी ग़रीबी से,
परेशान है कोई अपने ही करीबी से।
किसे को छीनी हुई कुर्सी का दुःख है,
कोई होता जूल्म देख कर भी चुप हैI
कोई लगा जात-धर्म का पत्ता खेलने में,
अपनी ज़मीर और देश को बेचने में।
यहां होते लाखों-करोड़ों के घोटाले देख ले,
जान -बूझ कर उलझाएं हुए मसले देख ले।
हक़ के लिए लगते हुएं यहां धरने देख ले,
वोटरों को गुमराह करते यहां नेता देख ले।
धर्म के नाम पर भी होते यहां दंगे ने,
जात -पात आदि और भी कई पंगे ने I
लीडरो का हुआं है यहां विकास बड़ा,
ग़रीब आज भी मनदीप वहीं है खडा I
मनदीप गिल धड़ाक