!!!! खफ्फा !!
क्या हक़ है ,मुझ को
कि , मै खफ्फा हो जाऊं
किस बात पर , तुझ से
अपना यह मुख मोड़ जाऊं…
सहना है सब कुछ
और रहना है
मुझ को, हर पल यहाँ
तो कैसे मैं अपना
रूख मोड़ जाऊं…
वक्त की दरकार है
वफ्फा करता रहूगा
बेशक कोई गम दे
या दे दे मुझ को दरकार
मैं तेरे प्यार पर
खुद को बस मिटता जाऊं …
इंसान हूँ, और कुछ नहीं
हैवानियत से दूर हूँ
बफ्फा करना जानता हूँ
और वाफ्फा ही कर रहा हूँ,
तो क्यूं न पल पल
मैं तुम पर निसार जाऊं !!
अजीत कुमार तलवार
मेरठ