खत
“खत”
मैंने उसे खत लिखा , यह सोच कर कि जवाब आएगा ।
मुझ बदनसीब के हिस्से में भी , शायद थोड़ा शबाब आएगा ।
उसने फाड़ कर फेंक दिया , मेरे खत को ।
सोचा ना था , नतीजा इतना खराब आएगा ।
अब हिम्मत नहीं , किसी को भी खत लिखने की मेरी ।
क्या पता जवाब , खराब या लाजवाब आएगा ।।
(स्वरचित)
विवेक आहूजा
बिलारी
जिला मुरादाबाद
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