खत्म होती पर आस नहीं,,
26.07.16
“आस”, बिन बह्र कुछ,,
नयन भर भर पीता आँसूं,
खत्म होती पर प्यास नहीं,,
गिरजे,मन्दिर,मस्जिद,ढूंढे बस खुदा
खत्म होती पर क़यास नहीं,,
झोलियाँ भर भर रत्न समेटे,
खत्म होती पर ह्रास नहीं,,
करे हर मुमकिन नुकसान प्रकति का,
खत्म होती पर त्रास नहीं,,
शेष बचा हो शून्य ही चाहे,
खत्म होती पर आस नहीं,,
****शुचि(भवि)****