खत्म न होने वाला इन्तेजार
तेरे इंतज़ार कि घडी बहुत बड़ी है,
में रब से दुआ करता रहा वो आगे बढती रही,
वो लम्हे खतम न हो सके उस दिन,
जिस दिन मैने दुआ कि, वो आगे निकलते रहे !!
सोच तक न सीमित रहा मेरा इंतज़ार,
मुझे करता रहा वो बार बार लाचार,
घडी कि सुईओं को देख होता रहा बेजार,
पर खत्म न होने का नाम ले यह इंतज़ार !!
खुशनसीब हैं वो लोग जो इस से बचते हैं
घडी घडी जा कर न देखते वो घडी हैं
न परेशानी, न कोई दर्द के बेचनी है उनको,
उनको क्या लेना , क्या करेगा कोई उनका इंतज़ार !!
कवि अजीत कुमार तलवार
मेरठ