खता तो हुई है …
खता तो हुई है, मगर सिर्फ इतनी,
न तुम हमको समझे, न हम तुमको समझे,
खता तो हुई है …
मैं जिंदगी के हर इक मोड़ पर ,
सफल से सफलतम हुआ जा रहा था,
व्यस्त से व्यस्ततम हुआ जा रहा था,
मगर ये न सोचा किसी एक क्षण भी,
कि जीवन में जो राहें हमने चुनी थी,
रेशमी परितृप्तियां जो हमने बुनी थीं
उन राहों में तुम ही तो मेरी राजदां थी,
तेरी तन्हाइयां ही तो मेरा आशियां थीं,
उनमें अकेले तुम्हें छोड़कर मैं,
दूर बहुत दूर तक जा चुका था,
सब कुछ पाने की ही तमन्ना में,
सब कुछ गंवाने की हद में आ चुका था,
सोचा था सारे जहाँ की सफलता,
लाके तेरे कदमों में डाल दूंगा,
फिर शेष जीवन तेरे साथ,
तेरी ही चाह में काट दूंगा,
मगर तोड़ दी तुमने सब वर्जनायें,
मन में बसीं वो मधुर कामनायें,
सोचा न क्यों तुमने इस तरह से,
कि जब भी मैं गुजरूंगा,
उन हरी वादियों से,
हर कदम हमकदम, तेरा अहसास होगा,
मन को लुभाते हर कली फूल में,
तेरी खन-खन हॅसी का आभास होगा,
जहाँ तुमने मुझसे कहा था मेरे प्रिय,
काश कि वक्त यही थम जाता,
खोई ही रहती मैं ऐसे ही तुममें,
काश कुछ वक्त और मिल जाता,
मगर अब न कुछ भी है पास मेरे,
सपने भी सब, धूमिल हो गये हैं,
जिस गम को हमने न जाना था अबतक,
अब उसके सच्चे रहनुमा हो गये हैं,
उस रोज भी जब मैं गुज़रा उधर से,
बाहर खड़ी थी तुम अपने दर से,
आंखों में तेरी अजब सी चमक थी,
मुख पर मगर अनकही सी कसक थी,
होठों से कुछ कहना चाहती थी,
अव्यक्त को व्यक्त करना चाहती थी,
पूछा था तुमने कैसा हूँ मैं,
क्या अब भी सबसे अलग सा हूॅ मैं,
बोला था मैं, कुछ बदल सा गया हूँ,
खोकर तुम्हें, सब समझ सा गया हूँ,
मगर तुम हो खुश तो नहीं रुष्ट मैं भी,
अनचाही किस्मत से संतुष्ट मैं भी,
मगर सच है यह भी, कि अब भी तेरे बिन,
रहती है मेरी हर शाम सूनी, सुबह अनमनी,
खता तो हुई है मगर सिर्फ इतनी,
न तुम हमको समझे, न हम तुमको समझे,
खता तो हुई है …