खता करके पूछती हो,ऐसा मैंने क्या किया ? आर के रस्तोगी
रात के ख्वाब जो दिन में देखने लगे |
उन्ही को दिन में अब तारे दिखने लगे ||
खता करके पूछती हो,ऐसा मैंने क्या किया ?
नयनो से तीर चलाये थे,आशिक मरने लगे ||
तुम्हारा चेहरा आईने में कैसे दिखाई देता ?
चेहरा देखते ही,आयने के अंग फडकने लगे ||
हटाये जो गेसू,उसने अपने खूबसूरत चेहरे से |
लगा ऐसा किसी चमन में फूल खिलने लगे ||
आस्तीन के साँप छिपा रक्खे थे खुद आस्तीनों में |
फिर क्यों पूछती हो,ये साँप मुझे क्यों डसने लगे ||
भले ही सोना तप कर,खरा भी हो गया होगा |
पर खोटे सिक्के भी बख्त पर काम आने लगे ||
आर के रस्तोगी
गुरुग्राम (हरियाणा)