खतरनाक बाहर से ज्यादा भीतर के गद्दार हैं (गीत)
खतरनाक बाहर से ज्यादा भीतर के गद्दार हैं (गीत)
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खतरनाक बाहर से ज्यादा, भीतर के गद्दार हैं
(1)
बाहर का दुश्मन है सबका, ही जाना पहचाना
रखो ठीक बन्दूक साध कर, उसकी तरफ निशाना
पर यह भी देखो दुश्मन के, लंबे कितने हाथ हैं
कितने अगर-मगर जो करते, दिल से उसके साथ हैं
छिपे हुए अपने लोगों में, ही दुश्मन के यार हैं
(2)
यह ही हैं वे लोग शत्रु से, जिनके तार जुड़े हैं
तरफदारियों के स्वर इनके, उसकी ओर मुड़े हैं
इन्हें रास कब आता, आतंकी को मार गिराना
छिपी हुई इनकी इच्छा है, भारत को हरवाना
भारत की बंदूकों को यह, कहते अत्याचार हैं
(3)
इन्हें बतानी ही होंगी, भारत की दृढ़ इच्छाएँ
राष्ट्रवाद को लेकर भ्रम में, कहीं न पड़ने पाएँ
बहुत हुआ अब लचर नीतियों, का ढोना- ढुलवाना
देश – विरोधी हमदर्दों को, होगी गोली खाना
अल्टीमेटम दो सेनाएँ, लड़ने को तैयार हैं
खतरनाक बाहर से ज्यादा भीतर के गद्दार हैं
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रचयिता : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा,रामपुर (उत्तर प्रदेश)
मोबाइल 99976 15451