खडी फसल पर मेह
हुआ कृषक बेबस वहाँ, …सुन्न हो गई देह।
बेमौसम बरसे जहाँ , खड़ी फसल पर मेह।।
करती धरती पुत्र पर, .. ..कुदरत भी आघात ।
पकी फसल पर जब कभी,हो जाती बरसात ।।
रमेश शर्मा.
हुआ कृषक बेबस वहाँ, …सुन्न हो गई देह।
बेमौसम बरसे जहाँ , खड़ी फसल पर मेह।।
करती धरती पुत्र पर, .. ..कुदरत भी आघात ।
पकी फसल पर जब कभी,हो जाती बरसात ।।
रमेश शर्मा.