खड़ा रेत पर नदी मुहाने…
खड़ा रेत पर नदी मुहाने।
गाता कोई गीत सुहाने।
आह न भरता हर गम सहता,
सुनता है अग – जग के ताने।
धता बताकर पगला सबको,
गाए खुश-खुश नेह-तराने।
क्या ठाना है मन में उसने,
उसके मन की वो ही जाने।
कहाँ – कहाँ वो आए – जाए,
ढूँढो उसके ठौर – ठिकाने।
नजरों से बचकर दुनिया की,
मिलते छुप – छुप दो दीवाने।
इश्क उजागर हो ही जाता,
लाख छुपाएँ लोग सयाने।
बच न पाए नजर से उसकी,
कर ले ‘सीमा’ खूब बहाने।
© सीमा अग्रवाल
मुरादाबाद