खजूर का पेड़
चुनावी दंगल में उतरा ,
बड़े पेड़ का छोटा निशान,
विकास का नन्हा पौधा,
गलियों में जन्मा पला बड़ा,
एक सभासद पद का भार।
जोश जूनून न विकास का मुद्दा,
विरोधियों से जितने का किस्सा,
रण में उतरे खेलने खेल,
राजनीती में बनेंगे शेर,
पाया चिन्ह खजूर का पेड़।
जोर शोर से चली हवा,
डोले पेड़ गिरे खजूर,
मच गया हल्ला देख हुजूर,
जुटी भीड़ लेने को स्वाद,
मन माफिक खाए जरूर।
भय से आतुर हुआ प्रत्याशी,
लगाया देख जोर फिर खूब,
रोक न सका हिलने से पेड़,
खुद ही चढ़ गया पेड़ पे दूर,
रुकी आंँधी जीता पेड़ खजूर ।
रचनाकार-
बुद्ध प्रकाश,
मौदहा हमीरपुर (उoप्रo) ।