खजाना
मेरी एक पुरानी बाल रचना आज पुनः आप सभी के समक्ष – ???
खजाना
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चलो क़िताबें करें इकट्ठी,
अपनी सभी पुरानी।
हम तो पढ़कर निबट चुके हैं,
पर ये व्यर्थ न जायें।
पड़ी ज़रूरत जिनको इनकी,
काम उन्हीं के आयें।
राजा,असलम, गोलू, रोज़ी,
बिन्दर, पीटर, जॉनी।
चलो क़िताबें करें इकट्ठी,
अपनी सभी पुरानी।
जिन मूरख लोगों ने इनको,
केवल रद्दी माना।
उन्हें दिखा दो ज्ञान-ध्यान का,
इनमें छिपा खजाना।
अपना सीखा बाँटें सबको,
हम हैं हिन्दुस्तानी।
चलो क़िताबें करें इकट्ठी,
अपनी सभी पुरानी।
अबके छुट्टी में हम मित्रो,
यह अभियान चलायें।
नहीं किताबें व्यर्थ पुरानी,
द्वार-द्वार समझायें।
दादा, दादी, मम्मी,पापा,
या हों नाना, नानी।
चलो किताबें करें इकट्ठी,
अपनी सभी पुरानी।
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– राजीव ‘प्रखर’
मुरादाबाद (उ० प्र०)
मो० 8941912642)