खंड: 1
खंड: 1
1..मरहठा छन्द
मात्रा भार 10/8/11
मन पालन करता नियम समझता, चेतन बन कर ध्यान |
शुभ गायन करता,राह पकड़ता, पाता प्रिय गतिमान |
वह पंथ दिखावत,हाथ मिलावत,सबके प्रति सम्मान |
बन सिद्ध विचरता,निग्रह करता,देता उत्तम ज्ञान.
प्रिय मधुर मनोहर ,गाता सोहर, लगता सहज हुज़ूर |
अति मीठी बोली, शुभ रंगोली,मनमोहक भरपूर |
शिव शिव प्रभु कहता, दिव्य गमकता,लगाता जैसे नूर |
वह सबका प्यारा, निर्मल धारा,गुरुवर बिना गरूर |
2…मरहठा छन्द
सुन्दर परिवर्तन, अभिनव जीवन, करता है खुशहाल |
नित मन को बदलत,मिलती दौलत, परिवर्तित हो चाल |
जड़ चेतन बनता,आगे बढ़ता, रखता सबका ख्याल |
है कटुता घटती ,प्रियता बढ़ती , दिल में नहीं मलाल |
जब अभिनव अlता,रस बरसाता, होते मोहक काम |
सब में उमंग हो, सुखद रंग हो, मिलते चारों धाम |
मन में प्रसन्नता,अति तन्मयता, कभी न होती शाम |
है तन जोशीला , प्रिय रंगीला,मिलता सुख विश्राम |
3….अमृत ध्वनि छन्द
मात्रा भार 24
जिसको अति प्रिय राम हैं, वही भक्त हनुमान |
वही अयोध्या धाम में, करत राम गुण गान ||
राम सहायक, सब के नायक,दुनिया कहती |
राम मनोहर, रहते घर घर, वृत्ति समझती ||
अति प्रिय निर्मल, शिवमय अविरल,शांतरसिक हैं |
पावन गाथा, उन्नत माथा, ज्ञानधनिक हैं ||
राम अनंत असीम हैं ,अवध अनंत निवास |
सरयू चारोंओर हैं, जहाँ राम का वास||
अवध निवासी, प्रिय संन्यासी, जन कल्याणी |
मात पिता का, आज्ञा पालक,मधुरी वाणी ||
राम अनुग्रह, जिसके ऊपर, वह अमृत है |
बन कर सुन्दर, मानववादी,वह संस्कृत है ||
4….दोहे
सकल विश्व है राममय,जग पालक श्री राम |
अजर अमर श्री राम की, सारी धरती धाम ||
भुवनेश्वर भगवान प्रभु, सदा काल के काल |
छोड़ सभी जंजाल को,भजो राम तत्काल ||
तन मन से सत्कर्म का, मांग एक वरदान |
दया सिंधु श्री राम जी, का कर प्रति क्षण गान ||
निर्मल मन से राम का, पूजन करना नित्य |
करते रहना अर्चना, मन में रख शुभ कृत्य ||
रामेश्वर रघुपति सदा, जग के पालनहार |
त्रेता युग में राम का, हुआ दिव्य अवतार |
राम सुखद संदेश दे, करते सबको पार|
कभी न छोड़ो संग रह,वे सबके पतवार ||
थल वह परम पवित्र है, जहाँ राम का ग्राम |
सार्वभौम श्री राम का, सकल जगत है धाम ||
सतत राम से नेह का, मतलब बस है एक |
मानवता हो मनुज में, और इरादा नेक ||
त्याग तपस्या वृत्ति के, रामचन्द्र भंडार|
धर्म स्थापना के लिए, लेते वे अवतार||
5.. .मरहठा छंद
प्रिय समतावादी, मधु संवादी,रचता शिव परिवार |
सब का दुख सुनता, हरता रहता, रखता सुखद विचार||
सब के प्रति ममता,सहनशीलता, मन में निर्मल भाव |
परिजन का रक्षक, सूक्ष्म निरीक्षक,मोहक सहज स्वभाव ||
निज मन अति सच्चा,करता अच्छा,सब से करता प्यार |
छल कपट नही है,लपट नहीं है, स्नेहिल है दीदार ||
वह सदा रसातुर,प्रेमिल चातुर,उत्तम है किरदार |
वह अति प्रिय नायक,साथी लायक, सामाजिक आधार ||
6….विधाता छन्द
जहाँ जाओ रहो प्रेमिल, बने प्रिय काम करना है |
चलो सब का बने साथी, सहज सम भाव रखना है |
नहीं रखना परायापन,यही उत्तम मनुज कहता |
सदा संवाद सब से हो, इसी से शुद्ध मन बनता |
नहीं आलोचना करना, बुरी आदत इसे जानो |
सदा व्यवहार अच्छा हो, इसे सार्थक नियम मानो |
सदा कल्याण की इच्छा, रहे मन में सहज जागृत |
गलत कुछ मत कभी सोचो,सदा शुभ कृत्य हो स्वीकृत |