खंडर इमारत
खड़ी एक इमारत सड़क से थोड़ी दूर,
सुनसान जगह पर है ,
कभी यह भी रही होगी बहुत विशाल बहुत आलीशान ,
मगर अब महज़ एक खंडर है।
इस इमारत में आज कहानियाँ तो मिलती है,
परंतु अब वो लोग नहीं मिलते,
जिन्होंने इसका कोना- कोना सजाया था,
बड़ी शान–ओ–शौकत से इस इमारत को बनाया था।
वैसे मैने सुना था आज तक
दीवारों के कान होते है ,
मगर आज देखी है दीवारें एक इमारत की ऐसी
जो बोलती है अपनी बोली ,
बोल रही है मुझसे ,
देखो ज़रा सा मेरी ओर ,
देखो किस तरह हुआ है घमंड मेरा चूर – चूर ,
कभी थी मैं भी बहुत खुशहाल ,
मगर देखो अब हूँ किस तरह बेहाला
मेरे आंगन से भी सुनाई देती थी ,
बच्चो की चेह – चाहट ,
मगर अब सुनाई पड़ती बस ,
हवाओं की सर – सराहट,
देखो ज़रा सा मेरी ओर ,
मै हूँ एक पुरानी खंडर इमारत ,
जो रहना तो चाहती थी आबाद ,
मगर देखो अब है किस तरह बेहद बर्बाद ।।२
❤️ सखी