आजादी (स्वतंत्रता दिवस पर विशेष)
तन्हाई में अपनी परछाई से भी डर लगता है,
दुनिया के हर क्षेत्र में व्यक्ति जब समभाव एवं सहनशीलता से सा
खुली आँख से तुम ना दिखती, सपनों में ही आती हो।
मेरे सब्र की इंतहां न ले !
एक दिन सूखे पत्तों की मानिंद
खिड़कियां हवा और प्रकाश को खींचने की एक सुगम यंत्र है।
महाकाल
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
उस सावन के इंतजार में कितने पतझड़ बीत गए
ठाकुर प्रतापसिंह "राणाजी "
प्रयास
दीपक नील पदम् { Deepak Kumar Srivastava "Neel Padam" }
//सुविचार//
विनोद कृष्ण सक्सेना, पटवारी
पता नही क्यों लोग चाहत पे मरते हैं।
*कुत्ते चढ़ते गोद में, मानो प्रिय का साथ (कुंडलिया)*
गरीब–किसान
Dinesh Yadav (दिनेश यादव)