"सबकी नज़रों में एकदम कंगाल हूँ मैं ll
मैं ढूंढता हूं रातो - दिन कोई बशर मिले।
रक्षाबंधन के दिन, भैया तू आना
*सबसे महॅंगा इस समय, छपवाने का काम (कुंडलिया)*
अन्याय करने से ज्यादा बुरा है अन्याय सहना
हर इक शाम बस इसी उम्मीद में गुजार देता हूं
भीतर की प्रकृति जुड़ने लगी है ‘
घर को जो रोशन करें वह चिराग है बेटियां
*भूल कर इसकी मीठी बातों में मत आना*
सुख दुख जीवन का संगम हैं
Shyamsingh Lodhi Rajput "Tejpuriya"
हुस्न वाले उलझे रहे हुस्न में ही
शीर्षक :मैंने हर मंज़र देखा है
बुंदेली साहित्य- राना लिधौरी के दोहे
राजीव नामदेव 'राना लिधौरी'
बेइमान जिंदगी से खुशी झपट लिजिए