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17 Aug 2021 · 1 min read

— कफ़न —

रोजाना नए नए
लिबासों का
रखा करते थे जो
शौंक इतना
की अपनी मौत
पर यह भी नही
कह सके कि
यह कफ़न ठीक नही
क्या रंग पहना
किस रंग से विदा होना
कोइ न कह सका
यह नही अच्छा
कितनी फिटिंग के
साथ दरजी के
साथ बहस हो जाती
जाते जाते
वो दरजी भी
कुछ कह न सका
रखो शौंक उतना
जितना माफिक आ सके
क्या फायदा
जाते जाटते
हम किसी से
कुछ कह भी न सके

अजीत कुमार तलवार
मेरठ

Language: Hindi
1 Like · 370 Views
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