कफ़न तैयार है (ग़ज़ल)
कौन किसे खबर है!सब है इस बात से अन्जान ,
के कोई गमगीन सी रहा है अपने वास्ते कफ़न .
जिंदगी से किनारा कर ,अरमानो को अपने फूंक ,
अश्कों के धागे से सी रहा है अपने वास्ते कफ़न.
इस जहाँ से उसने क्या पाया ,महज खोया ही ,
रेशम का पैरहन नहीं उसके नसीब है सफ़ेद कफ़न .
खुदा से मिन्नतें भी की और की शिकायेंत भी बहुत ,
हासिल क्या,आखिर को अरमानो को करना पड़ा दफ़न.
ना तो कोई उसे समझ सका ,ना ही वो समझा सका,
लबों पर आते-आते ज़ज्बात हो जाते थे अक्सर मौन .
अब तक तो जी रहा था किसी तरह गम खाते हुए,
मगर जब चोट रूह पर लगी तो कांप उठा वो इंसा .
आखिरश जब इन्तेहा हो गयी दर्द की तो चीख उठा,
नहीं गर मेरे नसीब में खुशिया तो ,दे दे मुझे कफ़न .