क्षेत्रक
एक क्षेत्र है
यह शरीर
और इसका ज्ञाता
‘क्षेत्रक’
समस्त क्षेत्रों में यह ‘क्षेत्रक’
परम है
‘क्षेत्र’ व ‘क्षेत्रक’ का स्वरूप
भिन्न-भिन्न हो सकता है
परन्तु,
सभी होते हैं-‘वासुदेवात्मक’
…
‘महाभूत’, ‘अहंकार’, ‘बुद्धि’ और ‘अव्यक्त’
शरीर को उत्पन्न करने वाले
द्रव्य हैं.
‘पृथ्वी’, ‘जल’, ‘तेज’, ‘वायु’ और ‘आकाश’
यही पाँच महाभूत हैं
भूतों के आदिकारण का नाम है-
‘अहंकार’
‘बुद्धि’ नाम है
महत्तत्व का
और प्रकृति है-
‘अव्यक्त’
शरीर के आश्रित तत्व हैं षोडश
दस इन्द्रियाँ, एक मन
और पाँच इन्द्रियों के विषय
ज्ञानेन्द्रियों और कर्मेन्द्रियों का समुच्य
इन्द्रियाँ हैं
‘प्रकृति’ और ‘पुरूष’
यही अनादि हैं
गुण और विकार उत्पन्न होते हैं
‘प्रकृति’ से
‘पुरूष’ प्रकृति में स्थित हो
भोगता है-
प्रकृति से उत्पन्न गुणों को
और विकारों को भी.
गुणों या विकारों की संगति ही
निर्धारक है
अच्छी या बुरी
योनियों में
नव-जन्म का.
…
जैसे सूर्य प्रकाशित करता है
समस्त लोकों को
वैसे ही ‘क्षेत्रक’
प्रकाशित करता है
समस्त क्षेत्र को.
क्षेत्र-क्षेत्रक का भेद
और भूत-प्रकृति के मोक्ष को
ज्ञान नेत्रों द्वारा जानने वाला
प्राप्त होता है
परम तत्त्व