क्षुद्रिकाएँँ
दुश्मनी
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दु:स्वप्न सा भर के
गरल आकंंठ
दोनों आखों में ले
तडि़त सौदामनी।
संकल्प
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संस्कार कल्प
बदल दे कलेवर तन का
कर ले प्रण उठा के
कुलिश विकल्प।
बसन्त
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बस अंत
सभी दर्द, व्यथा, घृणा,
द्वेष, दम्भ,स्वार्थ और
भष्टाचार का।
बस अंत, बस अंत
तभी सार्थक बसन्त।
प्रेम
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मन का आह्लाद
प्रीत के निकषण में नेह निनाद
एक चुम्बकीय आकर्षण
एक सुखद अनुभूति
जीवन की गूँज और
मौन अभिव्यक्ति।
जीवन
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‘जी’ ‘वन’ चाहे
‘जीव’ ‘न’ चाहे,
‘जी’ ‘व’ ‘न’ की द्विविधा में
‘जीवनद्ध बीता जाए।
अतिथि
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अतिथि वो,
जिसके आने की
तिथि
तय न हो।
सत्रह शत्रु हार
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काम, क्रोध, मद, लोभ, मोह,
मत्सर रिपु के संचार।
द्वेष, असत्य, असंयम, गल्प,
प्रपंच और करे संहार।
स्तेय, स्वार्थ, उत्कोच, प्रवंचना,
सर्वोपरि विष अहंकार।
जो धारे ये अवगुण सब के सब
सत्रह हैं शत्रु हार।।