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6 Feb 2022 · 1 min read

क्षितिज भर व्यथा

ना दिल में गम, न बेताबी, ये कैसी है सजा देखो ।
हंसाती भी, रूलाती भी, मुहब्बत की अदा देखो ॥

था ये इसरार ख्वाबों का, मिलन की रात को भेजो ।
कि उपसंहार करना है, अधूरी है कथा देखो ॥

मिले थे वो, था वो जीवन, भले मुझको लगा छोटा ।
हथेली पर रचाते शाम, हाथों की अदा देखो ॥

जहाँ छूटी, वहीं पर है अधूरी ज़िंदगी मेरी ।
न जाने और क्या आगे है किस्मत में बदा देखो ॥

विरह अपना अभी सिरवा दिया गंगा में है मैंने ।
मृदुल संध्या सजा लायी, क्षितिज तक भर व्यथा देखो ॥

स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ

2 Likes · 1 Comment · 268 Views
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