क्षितिज भर व्यथा
ना दिल में गम, न बेताबी, ये कैसी है सजा देखो ।
हंसाती भी, रूलाती भी, मुहब्बत की अदा देखो ॥
था ये इसरार ख्वाबों का, मिलन की रात को भेजो ।
कि उपसंहार करना है, अधूरी है कथा देखो ॥
मिले थे वो, था वो जीवन, भले मुझको लगा छोटा ।
हथेली पर रचाते शाम, हाथों की अदा देखो ॥
जहाँ छूटी, वहीं पर है अधूरी ज़िंदगी मेरी ।
न जाने और क्या आगे है किस्मत में बदा देखो ॥
विरह अपना अभी सिरवा दिया गंगा में है मैंने ।
मृदुल संध्या सजा लायी, क्षितिज तक भर व्यथा देखो ॥
स्वरचित
रश्मि लहर
लखनऊ