क्षितिज के उस पार
धरती अम्बर जहाँ मिलते उस जगह का सार क्या है।
कोई तो मुझको बताए क्षितिज के उस पार क्या है।
एक साथ बैठ करके परस्पर बतिया रहे हों।
अपलक देखा लगा ऐसे नभ धरा
संग जा रहें हों।
सब जगह यह दूर रहते वहां पाते प्यार क्या है।
कोई तो मुझको बताए क्षितिज के उस पार क्या है।
क्षितिज से ही रवि निकलता, लालिमा सा वसन पहने।
हैं सुसज्जित भास्कर प्रति अंग धारे अंशु गहने।
सन्ध्या को सागर में छिपते सूर्य का मनुहार क्या है।
कोई तो मुझको बताए क्षितिज के उस पार क्या है।
चन्द्रमा भी है निकलता क्षितिज का पट खोल करके।
चंद्रिका संग पथिक बनकर बढ़ता पग पग तोल करके।
क्षितिज में जाकर समाते, तारों का पसार क्या है।
कोई तो मुझको बताए क्षितिज के उस पार क्या है।
क्षितिज से भर भर के लाता मेघ ढेरों जल गगन में।
क्षितिज से उठ तड़ित लगती कान्ति लिपटी हो अगन में।
पल में कड़के शान्त पल में दामिनी दमकार क्या है।
कोई तो मुझको बताए क्षितिज के उस पार क्या है।
पूरब से पश्चिम तक दिखता जाता उत्तर छोर तक।
दक्षिण व सब उप दिशाएं फैला चारों ओर तक।
जलधि पाद चुम्बन करता क्षितिज का विस्तार क्या है
कोई तो मुझको बताए क्षितिज के उस पार क्या है।
ज्यों मरीचिका का सलिल हो वैसे क्षितिज भी है पहेली।
जितना इनके निकट जाएं डगर होती अति दुहेली।
न कोई कह पाया अब तक क्षितिज का आकार क्या है।
कोई तो मुझको बताए क्षितिज के उस पार क्या है।
ग्रन्थ के पन्ने खंगाला बातें बन कर सीख निकली।
सब बना है धुन सहारे रचनाशक्ति धुन है इकली।
किम्बदन्ती है नहीं तो अनहद की झंकार क्या है।
कोई तो मुझको बताए क्षितिज के उस पार क्या है।
सुरज चन्दा तड़ित सागर,धरती अम्बर की है जो जद।
क्षितिज के इस पार अनहद, क्षितिज के उस पार अनहद।
है टिका ब्रह्मांड जिस पर,शब्द की धुनकार क्या है।
कोई तो मुझको बताए क्षितिज के उस पार क्या है।
-सतीश सृजन, लखनऊ.