क्षमा प्रार्थना
मन वितृष्णा से भर गया है जब सुना मानव इतना गिर गया है।
एक निरीह मूक गर्भिणी माता की हत्या कर आनंदित हो गया है।
वह यह भूल गया है कि प्राणी मात्र को इस धरा में जीने का अधिकार ईश्वर ने दिया है।
जिसे उससे छीनने का उसने दुस्साहस किया है। अपने सर्वश्रेष्ठ होने के दंभ में उसने यह कुकृत्य किया है।
उसने संपूर्ण मानव जाति में निहित मानवता पर कुठाराघात कर उसे अपमानित किया है।
उसने हर संवेदनशील मानव हृदय को आहत कर उसे क्षोभ और वितृष्णा से भर दिया है।
उसके इस अक्षम्य अपराध से हर मानव का मस्तक अपराध बोध लज्जा से झुक गया है।
इस पाप के आघात से भावनाएं पुण्य के शिखर से अधोगति की ओर अग्रसर हुई हैं।
जो मानव को निष्ठुर ,आततायी दानव परिभाषित कर रही हैं।
ईश्वर से समस्त मानव जाति क्षमा प्रार्थी है कि कुछ संवेदनहीन पथभ्रष्ट तत्वों के निकृष्ट कृत्य से संपूर्ण मानव जाति को अपने कोप का भाजन ना बनाओ।
और इस स्वर्ग सी सुंदर वसुंधरा को अपनी कृपा दृष्टि से मानव हृदय में सहअस्तित्व सद्भाव का संचार कर इसे रसातल मे जाने से बचाओ।