क्षण-मुक्त
तुम्हें-
कहाँ देखूँ ?
तुम खो गए कहीं….
जब-जब देखना चाहा!
तुम्हें सुन नहीं पाता-
सुनने का स्वांग करके।
कभी यूँ ही…
सन्नाटे में….
चिहुँक उठता हूँ।
तुम,
शायद कुछ बोल जाते हो!
मन में….
तब कान नहीं सुन पाते!
आँखें बंद हो जाती हैं……
वह क्षण!!!
जब तुम दिख जाते हो।
जब तुम सुनाई पड़ते हो।